हरिद्वार

सेवा, प्रेम व एकता के पर्याय थे श्री गुरु नानकदेव जी: डॉ. पण्ड्या


शांतिकुंज में मनाई गयी गुरु नानक देव जी की 551वीं जन्म जयंती

हरिद्वार 30 नवम्बर।
गायत्री तीर्थ शांतिकुंज सहित देश-विदेश के गायत्री परिजनों ने भी सिख धर्म के संस्थापक महान योगी श्री गुरु नानकदेव जी की जन्म जयंती ‘प्रकाश पर्व-दीपांजलि’ के रूप में उत्साहपूर्वक मनाई। सिख धर्म के प्रथम श्री गुरु नानकदेव जी की याद में अंतेवासी कार्यकर्त्ताओं ने युगऋषि के पावन समाधि के पास एकत्रित हो, दीप प्रज्वलित किये। इस दौरान वक्ताओं ने अपने अंदर को भी प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया। संगीत विभाग द्वारा प्रस्तुत संकीर्तन से उपस्थित जन समुदाय आनंदित हो उठे। कार्यक्रम कोविड-19 के अनुशासनों का पालन करते हुए दीपांजलि पर्व मनाया।
अपने संदेश में अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि जिस तरह से श्री गुुरु नानकदेव जी ने सिख धर्म में सेवा, प्रेम, एकता एवं भाईचारा जैसे सद्गुणों को पिरोया है, उसी तरह वर्तमान समय में युगऋषि गुरुदेव ने गायत्री परिवार सहित विश्व भर में सद्गुणों को विकसित करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने कहा कि श्री गुरु नानकदेव जी सदैव क्रियात्मक विचारों पर जोर देते थे, उनका लगाया पौधा आज विशाल वृक्ष के रूप में देखा जा रहा है। डॉ. पण्ड्या ने कहा कि कभी-कभी धरती पर सद्गुरु लाखों-करोड़ों का जीवन बदलने आते हैं। ऐसे ही सद्गुुरुओं में श्री गुरु नानकदेव जी रहे हैं। संस्था की अधिष्ठात्री शैलदीदी ने कहा कि सद्गुरु नानकदेव जी द्वारा दी गई सीख से आज अनेकानेक लोगों ने अपने जीवन की दिशाधारा बदली है। परम पूज्य गुरुदेव ने भी लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन को नई दिशा दी है, जिससे अनेकानेक लोगों ने अंधकार से प्रकाश की ओर, धार्मिक एकता एवं राष्ट्र के कल्याण के लिए अपना जीवन होम दिया है।
इस अवसर पर गुरुसत्ता के पावन समाधि के पास शांतिकुंज के अंतेवासी कार्यकर्त्ताओं ने पंक्तिबद्ध होकर दीप प्रज्वलित किये, तो वहीं संचालकों एवं वक्ताओं ने गुरु नानक देव जी एवं अपने सद्गुरु के सीख को व्यावहारिक जीवन में उतारने के लिए प्रेरित किया। इस दौरान वैदिक मंत्रोच्चार के साथ सद्गुरु का आवाहन एवं पूजन किया गया। व्यवस्थापक श्री महेन्द्र शर्मा, श्री शिवप्रसाद मिश्र, देसंविवि के प्रतिकुलपति डाॅ चिन्मय पण्ड्या, उदय किशोर मिश्रा सहित शांतिकुंज, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान परिवार विशेष रूप से उपस्थित रहे।

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