महा कुम्भ 2021

पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में धर्म ध्वजा स्थापित

कुंभ मेले का स्वरूप होती है धर्म ध्वजा: कैलाशानंद गिरी

धर्मध्वजा की स्थापना के बाद नागा सन्यासी करते हैं इसकी रक्षा : श्रीमहंत रविंद्रपुरी

हरिद्वार। कुंभ मेले की पहली धर्म ध्वजा पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में विधि विधान के साथ स्थापित की गई। पारंपरिक पूजन के साथ 52 फुट की धर्म ध्वजा साधु-संतों ने बैंड बाजे के साथ ही पूजन भी किया। जोर-जोर से जयकारें लगाये। सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि के साथ ही मेला प्रशासन के अधिकारी धर्म ध्वजा में शामिल हुए।
पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी स्थित चरण पादुका मंदिर प्रांगण में शनिवार की सुबह 8:30 बजे पूजा अर्चना कर परंपराओं का निर्वहन करते हुए धर्म ध्वजा स्थापित की गई। धर्म ध्वजा स्थापित करने में हाइड्रा मशीन का भी प्रयोग किया गया। निरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज ने कहा कि धर्म ध्वजा कुंभ मेले का स्वरूप होती है। उन्होंने कहा कि कुम्भ के लिए धर्म ध्वजा अखाड़ों की धार्मिक पहचान होती है। कुंभ मेले में दूर से ही धर्म ध्वजा दिखायी देती है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि महाराज ने कहा कि कुम्भ में भूमि पूजन कर धर्म ध्वजा स्थापित करने बहुत पुरानी परंपरा है। कुम्भ क्षेत्र में जाने के बाद अखाड़े सबसे पहले भूमि पूजन करते हैं और उसके बाद धर्मध्वजा स्थापित करते हैं। धर्म ध्वजा का दण्ड 52 हाथ का होता है जिसमें जनेऊ की 52 गांठें होती है। ये अखाड़ों की 52 मणियों का भी प्रतीक होती हैं। धर्म ध्वजा की स्थापना के बाद अब निरंजनी अखाड़े की पेशवाई 3 मार्च को एसएमजेएन पीजी कॉलेज स्थित छावनी से निकाली जायेगी। पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव एवं कुंभ मेला प्रभारी श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि पंचायती अखाड़ा श्री निरंजन की परम्परा है कि धर्म ध्वजा की स्थापना में अखाड़े के आठों श्री महंत मौजूद नहीं रह सकते हैं। ये श्री महंत पेशवाई के बाद ही छावनी में प्रवेश करेंगे। जबकि धर्मध्वजा की स्थापना के बाद इसकी रक्षा की जिम्मेदारी अब नागा संन्यासियों की होती है। धर्म ध्वजा स्थापना के दौरान कुंभ मेलाधिकारी दीपक रावत, आईजी कुंभ संजय गुंज्याल, अपर मेलाधिकारी हरबीर सिंह ने भी पहुंचकर पूजन किया। जबकि सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि भी धर्म ध्वजा स्थापना में शामिल रहे। इस अवसर पर महंत रविपुरी, स्वामी राजपुरी, दिगंबर राकेश गिरी, नीलकंठ गिरी, आनंद गिरि, गंगा गिरि, सुखदेव पुरी, राजेंद्र भारती, बलवीर पुरी, राजेंद्र गिरी, उमेश गिरी, मुख्तियार रघुवन, रतन गिरी आदि उपस्थित थे।

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