उत्तराखंडहरिद्वार

महाशिवरात्रि पर्व पर शिवालयों में शिव भक्तों ने भगवान शंकर का किया जलाभिषेक,लगा श्रद्धालुओं का तांता

(संदीप शर्मा)

महाशिवरात्रि यानी भोलेनाथ और माता पार्वती के विवाह का दिन, अर्थात भगवान शिव का दिन और महाशिवरात्रि पर भक्तों का भगवान् भोले के मंदिरों में उमड़ना भी स्वाभाविक है। भोले शंकर की ससुराल दक्ष नगरी कनखल में महाशिवरात्रि की धूम है। कनखल के भगवान शिव की ससुराल पौराणिक दक्षेश्वर प्रजापति महादेव मंदिर और हरिद्वार के अन्य सभी शिवालयों में शिव भक्त भगवान शंकर का जलाभिषेक करने के लिए बड़ी संख्या में पहुंच रहे है। कोरोना के असर भी कुछ कम हुआ है और इसी के चलते सुबह से ही शिव का जलाभिषेक करने के लिए भक्तो का मंदिर में ताता लगा हुआ है ।कहा जाता है कि पौराणिक नगरी कनखल में भगवान् शंकर की ससुराल में स्थापित शिवलिंग दुनिया का पहला शिवलिंग है और यहां हुआ भगवान शंकर और पार्वती विवाह दुनिया का पहला विवाह था और इस दिन दक्षेश्वर महादेव मंदिर में भोलेनाथ का जलाभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है ।

आज ही के दिन भगवान शंकर और पार्वती का विवाह हुआ था और इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है और मान्यता है कि आज के दिन जो व्यक्ति दक्षेश्वर महादेव स्थित शिवलिंग का जलाभिषेक करता है उसे अन्य स्थान पर जल चढ़ाने से कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है।दक्षेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य्य पुजारी स्वामी विश्वेश्वर पुरी महाराज का कहना है कि महाशिवरात्रि पर्व शिवजी का विवाह फागुन मास की चतुर्दशी तिथि को हुआ था इसी शब्द का अपभ्रंश हो गया है और शिवरात्रि हो गया है शुद्ध शब्द है शिव विवाह रात्रि आज ही के दिन भगवान शिव का इस सृष्टि मे प्रथम विवाह सती के साथ में हुआ था वही पद्धति हम आप सब धर्म हिंदू धर्मालंबी या सभी धर्मों के धर्मावलंबी उसी पद्धति के अनुसार विवाह करते हैं क्योंकि सृष्टि में सर्वप्रथम विवाह भगवान शिव का हुआ था सृष्टि में है जैसे शिव है वैसे ही यह सृष्टि है लोगों की समझ में नहीं आता, शिवरात्रि का पर्व है और भगवान शिव की यह ससुराल है कनखल यही भगवान शिव का सती से दुनिया का प्रथम विवाह हुआ था इस
पाणिग्रहण संस्कार के उपलक्ष में उसकी खुशियों के लिए रूप में भगवान शिव की शुभ विवाह रात्रि को शिवरात्रि के पर्व के रूप में मनाया जाता है क्योंकि यह स्थान भगवान शिव की विवाह रात्रि का वही स्थल है जहां भगवान शिव का सती से विवाह हुआ था इसीलिए इस स्थान का विशेष महत्व है यहां भगवान शिव सती के साथ विराजमान है और यहां के भगवान शिव के मस्तक पर जलाभिषेक का अत्यधिक महत्व है लोग अपनी श्रद्धा अनुसार गंगाजल भगवान शिव को अर्पण करते हैं पंचामृत शहद इत्यादि सभी भगवान का पंचामृत से स्नान कराया जाता है बिल्व फूल पत्र पर मिष्ठान जो भी आपकी श्रद्धा है उसके अनुसार आप भगवान को अर्पित करें ,हां मेरा भी अनुभव है कि भगवान शिव यहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

क्योंकि भगवान महादेव यहां विराजमान है ,हां यह सृष्टि का पहला शिवलिंग है और यहां पहला विवाह भी मैं यही बोल रहा हूं राजा दक्ष इस सृष्टि के पहले राजा हुए ब्रह्माजी के मानस पुत्र राजा दक्ष, भगवान शिव के ससुर से राजा दक्ष, उन्हीं की पुत्री थी सती, दक्ष भगवान राजा दक्ष का मस्तक कटने के बाद भगवान शिव ने दक्ष को यह वरदान दिया था कि राजा दक्ष आज से मैं तुम्हारे इस कटे हुए धड़ के रूप में यहां विराजमान रहूंगा और तुम्हारे ही नाम से जाना जाऊंगा ,भगवान तभी से यहां मस्तक पर से शरीर गर्दन कटने के बाद जैसी आकृति हो जाती है उसी आकृति में भगवान शिव का यह लिंग है यह दुनिया में प्रथम लिंग के रूप में प्रथम स्थिति में भगवान विराजमान है लिंग रूप नहीं है पर भगवान की प्रथम स्थिति यही है, उसके बाद दुनिया में जितने भी ज्योतिर्लिंग हैं सभी इन्हीं का अंश है यह विशेष भूमि है और यहां पर आने पर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है और विशेष अनुभूति भी होती है ,आप लोगों की मीडिया वालों को भी यहां आने पर अन्य मंदिरों की अपेक्षा एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी फील जरूर होता होगा क्योंकि यह भूमि ही ऐसी है ।

कनखल स्थित पौराणिक दक्षेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि के दिन जलाभिषेक का विशेष महत्व है ।यही कारण है की शिवालयों पर स्थानीय ही नहीं बल्कि देश भर से श्रद्धालु जलाभिषेक करने आते हैं ।इनका मानना है कि इस स्थान पर जलाभिषेक करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और मन को शांति मिलती है और मनोकामनाए पूरी होती है।भगवान शंकर यानि भगवान आशुतोष को जल्द ही प्रसन्न होने वाले भगवान के रूप में जाना जाता है ।भोलेनाथ की इस महिमा से सभी प्रभावित है और शिवालय में आये सभी का प्रयास है कि वे भगवान को प्रसन्न कर सके ताकि उनकी मनोकामनाए पूरी हो सके । महाशिवरात्रि पर प्रशासन द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गए है ।

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