
हरिद्वार। पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के महामंडलेश्वर एवं भारत माता मंदिर के महंत स्वामी ललितानंद गिरि महाराज ने कहा कि देवोत्थान एकादशी पर किए गए व्रत और पूजा से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी करते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी और तुलसी पूजन के अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरि महाराज ने गंगा स्नान पूजनोपरांत साध्वी के आश्रम में भंडारे का आयोजन किया। उन्होंने कहा कि आज इस बार देव प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह पर्व कहीं 14 तो कुछ जगहों पर 15 नवंबर को मनाया जा रहा है। यानी दोनों दिन एकादशी तिथि रहेगी। इस दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। भगवान शालग्राम के साथ तुलसी का विवाह होता है।

इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक अपनी भक्त के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता की विनती के बाद उन्हें वापस सही करके सती हो गई थीं। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ। उनके साथ शालग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। वैसे तो हर एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। लेकिन देवउठनी एकादशी पर किए गए व्रत और पूजा से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
माता मंगला और भोले महाराज ने भी समस्त देशवासियों को देवोत्थान एकादशी और तुलसी विवाह की शुभकामनाएं प्रेषित की। इसी के साथ महामंडलेश्वर ललितानंद गिरी द्वारा खाद्यान्न सामग्री और नगर के विभिन्न भागों में कोरोना कीटों का वितरण के साथ-साथ निर्धन कन्याओं का विवाह भी कराया गया। इसके लिए उन्होंने माता मंगला और भोले महाराज और हंस फाउंडेशन को साधुवाद दिया। उन्होंने बताया कि भोले महाराज, माता मंगला ने अपना पूरा जीवन परमार्थ के लिए लिए समर्पित किया है। उनके लिए नर सेवा ही नारायण सेवा है। उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में वे जन सेवा के प्रत्येक क्षेत्रों में अनेक कार्य कर रहे हैं। इस अवसर पर साध्वी बालव्रती गीता योगी, साध्वी सुनीता, स्वामी जगदीशानंद, बजरंग द्विवेदी, हेमलता नेगी, आलोक यादव, भारत माता मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित कृष्णा, राहुल शुक्ला, कृष्ण कुमार आदि उपस्थित रहे।