उत्तराखंडहरिद्वार

दुनिया को विकृति से प्रकृति की ओर लौटना ही होगा: स्वामी रामदेव


आत्मनिर्भर भारत का आदर्श प्रारूप है पतंजलिः आचार्य बालकृष्ण

हरिद्वार। 01 अगस्त, 2022। पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन एवं पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार के संयुक्त तत्वावधन में सोसाईटी पफाॅर कन्जर्वेशन एण्ड रिसोर्स डेवलपमेंट आॅपफ मेडिशिनल प्लान्ट, नई दिल्ली तथा नाबार्ड, देहरादून के सहयोग से ‘पारम्परिक भारतीय चिकित्सा का आध्ुनिकीकरणः लोक स्वास्थ्य एवं औद्यौगिक परिप्रेक्ष्य’ विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारम्भ ख्यातिलब्ध् विद्वानों, वैज्ञानिकों की गरिमामयी उपस्थिति में हुआ।

आचार्य बालकृष्ण के 50 वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हो रहे इस विराट सम्मेलन का उद्घाटन दीपप्रज्ज्वलन एवं वैदिक मन्त्रोच्चारण से हुआ। पतंजलि वि.वि. के संगीत विभाग के सदस्यों द्वारा विद्वान् अतिथियों के सम्मान में स्वागत गीत ‘शुभ अभिनन्दन और वन्दन है- योग)षि के आंगन में’ की प्रस्तुति के पश्चात् विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति एवं वैदिक विद्वान् प्रो0 महावीर अग्रवाल द्वारा अतिथियों का भावपूर्ण स्वागत किया गया। उन्होंने अपने सम्बोध्न में कहा कि यह ऐतिहासिक सम्मेलन सभी के ज्ञानकोष में वृ(ि करेगा एवं अविस्मरणीय रहेगा।


इस अवसर पर सोसाईटी पफाॅर कन्जर्वेशन एण्ड रिसोर्स डेवलपमेंट आॅपफ मेडिशिनल प्लान्ट के अध्यक्ष डाॅ. ए. के. भटनागर एवं सचिव प्रो. जी. बी. राव द्वारा स्वामी रामदेव को ‘महर्षि सुश्रुत सम्मान’ एवं श्र(ेय आचार्यश्री को ‘महर्षि वाग्भट्ट सम्मान’ से अलंकृत किया गया। सम्मेलन में शोध्सार एवं मेडिशनल प्लान्ट जर्नल के विशेषांक का विमोचन भी हुआ जो आचार्य द्वारा आयुर्वेद अनुसंधन में विश्व को दिये गये उनके योगदान हेतु समर्पित रहा।


सम्मेलन के प्रथम सत्रा में अतिथियों एवं प्रतिभागियों को पतंजलि योगपीठ के परमाध्यक्ष एवं विश्वविद्यालय के कुलगुरु स्वामी रामदेव का पावन आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि पतंजलि वैभवशाली भारत के साथ-साथ स्वस्थ, सुखी व समृ( विश्व के निर्माण के लिए प्रतिब( है। उच्चस्तरीय एवं साक्ष्य आधरित अनुसंधन के क्षेत्रा में राष्ट्रीय स्तर पर पतंजलि का अवदान है जिसका मार्गदर्शन )षि परम्परा के प्रतिनिध् आचार्य बालकृष्ण स्वयं करते हैं। साथ ही उन्होंने प्रतिभागियों को सम्बोध्ति करते हुए बताया कि अबतक श्र(ेय आचार्यश्री के निर्देशन में पाँच लाख से अध्कि श्लोकों की रचना एवं एक लाख से अध्कि पृष्ठ वाले विश्व भेषज संहिता का निर्माण किया गया।
इस अवसर पर पतंजलि वि.वि. के कुलपति एवं अनुंसधन संस्थान के अध्यक्ष आयुर्वेद शिरोमणि आचार्य बालकृष्ण ने अपने सम्बोध्न में बताया कि पतंजलि के विभिन्न आयामों व स्वरूप को पूरा विश्व अनुभव करता है। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिकों को सम्बोध्ति करते हुए उन्होंने कहा कि अच्छे कर्मों की सतत प्रशंसा होनी चाहिए तथा कमियों को ठीक करने के लिए अनवरत मंथन करना चाहिए। आचार्यश्री ने किसानों को पतंजलि द्वारा जैविक कृषि प्रशिक्षण देने हेतु भारत सरकार के प्रयास की सराहना की तथा कहा कि अबतक प्रशिक्षित हो चुके 40 हजार किसानों में से 80 प्रतिशत किसानों ने जैविक कृषि पर निर्भर होकर अपनी आय में वृ(ि की है।
आयोजन समिति के अध्यक्ष एवं पी.आर.आई. की वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. वेदप्रिया आर्या जी ने बताया कि इस सम्मेलन में आॅनलाईन एवं आॅपफलाईन दोनों माध्यम से लगभग 21 देशों के हजारों प्रतिभागियों ने इसमें हिस्सा लिया। पतंजलि आयुर्वेद काॅलेज, पतंजलि विश्वविद्यालय, पतंजलि अनुसंधन संस्थान सहित भारत के प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रोपफेसर, वैज्ञानिकों, शोधर्थियों एवं विद्यार्थियों ने मौखिक व पोस्टर के माध्यम से अपने अनुसंधन को भी प्रस्तुत किया।
प्रथम दिवस के सम्मेलन अध्यक्ष एवं नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चन्द जी ने कृषि के क्षेत्रा में सुधर व विकास के लिए नवीन तकनीकी पर चर्चा की एवं पतंजलि के योगदान की सराहना की। डाॅ. ए. के. भटनागर जी ने उपस्थित प्रतिभागियों से चर्चा के क्रम में बताया कि पतंजलि ने स्वास्थ्य, शिक्षा, चिकित्सा आदि के क्षेत्रा में जो कार्य किये हैं वे सभी अनुसंधन आधरित रहे हैं। डाॅ. वेदप्रिया आर्या जी ने कृषि विकास तथा ई-आत्मनिर्भर पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस अवसर पर नाबार्ड के प्रो. भास्कर पंत, कृषि विशेषज्ञ देवेन्द्र शर्मा, प्रो. के. आर. ध्ीमान, प्रो. ओ. पी. अग्रवाल, डाॅ. आर. के श्रीवास्तव, डाॅ. पी. के. जोशी एवं डाॅ. अजीत सिंह नैन ने भी अपने महत्वपूर्ण व शोध्परक अनुभव प्रतिभागियों से साझा किये।
इस सम्मेलन में डाॅ. साध्वी देवप्रिया, डाॅ. के.एन.एस. यादव, डाॅ. वी.के. कटियार, स्वामी परमार्थदेव, डाॅ. अनुराग वाष्र्णेय एवं डाॅ. अनुपम श्रीवास्तव सहित संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों एवं अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों व विद्वानों की भी गरिमामयी उपस्थि

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