‘हवा’ ही तय करेगी गंगनगरी का सिरमौर
(प्रदीप गर्ग)
हरिद्वार। नतीजे नजदीक हैं लेकिन गंगनगरी की जुबां खामोश है और ‘हवाएं’ बेलगाम होकर बात कर रही हैं। कुछ हैं जो ‘हवाओं’ को सर करना चाहते हैं तो कुछ चाहते हैं कि हवाएं ‘हवा’ तक ही रहें। बहुतेरे ऐसे हैं जो अपनी खामोशी को जुबान ही परिणाम के बाद देंगे। ऐसे लोगों के गुलदस्ते तैयार हैं, बस देने किसे हैं ये तय होना बाकी है।
मुकाबला दिलचस्प रहा। मुकाबला रहा बीस साल बेमिसाल भाजपा और वनवासी हो चुकी कांग्रेस का। मुकाबला रहा गली कूचे तक फैले भाजपा के बूथवार मजबूत संगठन का और टुकड़ों में बंट कर रह गयी कांग्रेस का। मुकाबला था बीस साल से विधायक व देश की सबसे बड़ी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व्यवहार कुशल मदन कौशिक और कभी विहिप से कांग्रेस में आकर लोकप्रिय हुए पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष सतपाल ब्रहमचारी का। मुकाबला रहा मदन कौशिक की बीस साल की तैयारियों और सतपाल की पंद्रह दिनों की चुनौती का।
देश भर में अपने बेजान हो चुके नेटवर्क और परिवारवाद के आरोप झेल रही कांग्रेस के टिकट पर जैसे ही सतपाल ब्रहमचारी की घोषणा हुई तो इतना अंदाजा हो गया था कि अब चुनाव एकतरफा नहीं होगा। लेकिन ये अंदाजा भाजपा प्रत्याशी को भी शायद नहीं था कि वैलेंटाइन तक आते आते उनके ही लोग सतपाल को अपने हाथ से गुलाब देने लगेंगे। जिस कांग्रेस का नगर की कालोनी और गली मोहल्लों में नेटवर्क तो छोड़िये कई जगहों पर कार्यकर्ता तक नहीं थे। वहां चुनाव शुरू होते ही कांग्रेस के झंडे नजर आने लगे।
मदन समर्थकों के लिए अर्थहीन हुए नशे जैसे मुद्दे अचानक हवा में फैल गये। इन्हें बल तब मिला जब भीतरघातियों की बदौलत नगर में जगह जगह शराब की पेटियां पकड़ी जाने लगी। कई किसी के बंगले में तो कहीं किसी नेता के यहां तो कहीं किसी आश्रम में। इन सबमें आरोप लगे भाजपा प्रत्याशी के करीबियों पर। कर्मचारियों, व्यापारियों और भाजपा के आनुसांगिक संगठनों के बहुतेरे कार्यकर्ताओं की नाराजगी ने जैसे चुनाव को हॉट कर दिया और देखते ही देखते सतपाल चुनौती बनकर उभर गये। ये बात और है कि इसका अंदाजा खुद सतपाल को भी नहीं था।
चुनाव में बेहद विरोधाभासी हालात देखने को मिले। लोग भाजपा प्रत्याशी मदन कौशिक के लिए समर्थन बैठकों का आयोजन करते और पलटते ही हरिद्वार के हालात पर अफसोस जताते। कईयों का अफसोस यह भी कि यदि साथ देते दिखाई नहीं दिए तो देख लिए जाएंगे। डंडे, झंडे, पोस्टर, प्रचार, धनबल और टीम बल में भाजपा प्रत्याशी का कोई मुकाबला नहीं था। बूथवार संगठन और सबको साथ लेकर चलने का फायदा उन्हें मिलता दिखाई दिया तो मदन कौशिक की दमदार समानांतर टीम का काम अलग से चला। लेकिन ये बात पहली बार हुई कि लगातार लीक हो रही मदन की रणनीतिक बातें कांग्रेस प्रत्याशी के लिए काम की साबित हुई। चुनाव को मदन विरोधियों ने बीजेपी बनाम एमजेपी बनाने की तमाम कोशिशें की जो सफल साबित हुई। हालात यहां तक पहुंच गये कि मदन खेमे को चुनाव को संभालने के लिए अंतिम चार दिनों में रामलला, मोदी और हिंदू मुस्लिम जैसे कामयाब नुस्खों का सहारा लेना ही पड़ा। उधर सीधे सादे सतपाल के समर्थकों ने भी आहवान किया कि वोट कांग्रेस को नहीं बदलाव और सतपाल को दो क्योंकि उन्हें भी मालूम था कि कांग्रेस के बलबूते चुनाव लड़ा जा सकता है लेकिन जीत की दहलीत तक नहीं पहुंचा जा सकता। कौन जीतेगा और कौन हारेगा, यह जीत हार अलग विषय है और ईवीएम में कैद है। शांतिकुंज से लेकर कनखल तक और मध्य हरिद्वार से लेकर ज्वालापुर तक पहली बार ऐसी हवा बनी कि लोग कहने लगे कि मुकाबला कड़ा है और हैरत नहीं है कि ऐसे कहने वालों में भाजपा और उसके आनुसांगिक संगठन के लोगों की संख्या ज्यादा है। खास बात यह है कि चुनावी नतीजों के बाद नेताओं को यह समझना बाकी रहेगा कि दल जीतने और दिल जीतने में बड़ा फर्क होता है।
रिपोर्ट:प्रदीप गर्ग (उपाध्यक्ष, प्रेस क्लब हरिद्वार)