उत्तराखंड

शारदीय नवरात्रि पर विशेष: अद्भुत संयोग और आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र है श्मशान वासिनी काली मंदिर

कनखल के गंगा तट पर श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा के सचिव श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज ने की थी मंदिर की स्थापना

 

हरिद्वार/ विजय सुब्रह्मण्यम

इन दिनों नवरात्रि के अवसर पर सभी मंदिरों में धूम है, लेकिन कनखल स्थित बैरागी कैंप में श्मशान भूमि पर बने काली मां के मंदिर की छटा ही निराली है। यहां पर प्राचीन श्मशान वासिनी कालिका माता मंदिर में पहले नवरात्र से सायं कालीन यज्ञ प्रारंभ हो गया है, जो पूरे 9 दिन चलेगा और नवमी के दिन मंदिर परिसर में विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा।

शिवालिक पर्वत पर आसीन मां मनसा देवी मंदिर को सब जानते हैं। परंतु कनखल में श्मशान भूमि में स्थित मां काली के मंदिर की महिमा के बारे में लोग कम ही जानते हैं। यह मंदिर कई अद्भुत संयोगों और आध्यात्मिक शक्तियों का केंद्र है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं श्री निरंजनी पंचायती अखाड़ा के सचिव श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज द्वारा संचालित श्मशान वासिनी काली मां का मंदिर शहर की भीड़ से दूर कनखल में कल-कल बहती गंगा नदी के पूर्वी तट पर स्थित है और उस पार पश्चिमी दिशा में गंगा तट पर स्थित राजघाट, सतीघाट, शमशान घाट नजर आते हैं ।

श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज बताते हैं कि इस मंदिर के निर्माण को लेकर एक अद्भुत संयोग है। जब यह जमीन ली गई और इसमें खुदाई का काम किया गया तो इस भूमि पर खुदाई के समय जो पत्थर और कुछ अवशेष ऐसे मिले जो इंगित करते थे कि यहां पहले भी पूजा स्थल रहा होगा। इसी प्रेरणा से यहां पर काली मां के भव्य मंदिर का निर्माण सन् 2000 में किया गया। इस मंदिर के पुजारी संजय पुरी ने बताया कि सृजन और विनाश का कालचक्र सृष्टि में अनवरत चल रहा है। जिस तरह भगवान शिव को श्मशान पसंद है, वह वहीं ध्यान करते हैं श्मशान की भस्म लगाकर रखते हैं, इस तरह यहां पर काली माता ने भी अपना स्थान श्मशान भूमि को ही चुना है।

एक भक्त देवेंद्र कुमार कहते हैं कि उन्हें सभी समस्याओं का हल यहां मां काली के मंदिर में आकर मिलता है। उनके मन को अत्यंत शांति मिलती है। इसलिए वे रोज इस मंदिर के प्रांगण में आते हैं। मां काली के मंदिर परिसर में काल भैरव, हनुमान जी और भगवान शिव का शिवलिंग भी स्थापित है। देश विदेश से बड़ी संख्या में भक्त भी यहां पर आकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर प्रसाद चढ़ाते हैं और मां का आभार व्यक्त करते हैं।पंडित विशाल शास्त्री ने बताया कि मेक्सिको से आए एक विदेश भक्त थे ने सहस्त्र चंडी यज्ञ में भाग लिया। जो यज्ञ में भाग लेकर अपने को धन्य मानता है। पंडित विशाल शास्त्री ने शत् चंडी यज्ञ की विशेषता बताते है कि यह यज्ञ नवरात्र में ही होता है। यह यज्ञ सब बाधाओं का हरण करता है। यह यज्ञ दरिद्रता, क्रोध, शत्रु और घर में आ रही सभी विघ्न-बाधाओं का हरण कर लेता है और जिस पर मां काली की कृपा हो,वही इस यज्ञ में भाग लेता है।

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