उत्तराखंडहरिद्वार

साधना से दिवास्वप्न टूटते हैं और साधक मृत्यु में जीना सीखते हैं : करौली शंकर महादेव

श्री चक्रपाणि जी महाराज व करौली शंकर महादेव के प्रेरणादायी प्रवचनों से पंचदिवसीय पूर्णिमा महोत्सव में मिश्री मठ पर हुआ आध्यात्म व संस्कृति का दिव्य संगम

हरिद्वार, 07 नवम्बर। देवभूमि स्थित मिश्री मठ में आयोजित पंचदिवसीय पूर्णिमा महोत्सव (साधक महासम्मेलन) एवं देवभूमि रजत महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे श्री चक्रपाणि जी महाराज ने अपने सारगर्भित वाणी से साधकों के हृदयों में श्रद्धा, भक्ति और आत्मबोध की ज्योति प्रज्वलित की। उन्होंने अपने प्रवचन के आरंभ में पूज्य करौली शंकर महादेव जी के चरणों में नमन करते हुए कहा कि उनके सान्निध्य में ही आत्मा को परमानंद की अनुभूति होती है और हर संवाद आत्मा की सेवा या सर्विसिंग के समान है। महाराज जी ने बताया कि पूज्य करौली सरकार जी से मिलने या उनसे बात करने मात्र से ही तन-मन हल्का हो जाता है, चिंताओं का नाश होता है और साधक पुनः ऊर्जावान हो जाता है। उन्होंने कहा कि जो सौभाग्यशाली हैं, वे ही ऐसे महापुरुष के चरणों तक पहुंच पाते हैं, जिनसे आत्मिक शक्ति और दिव्यता का संचार होता है। अपने उद्बोधन में श्री चक्रपाणि जी महाराज ने करौली सरकार जी के प्रति अपने स्नेह और आस्था के अनुभव साझा करते हुए कहा कि यह एक ऐसी सरकार है जो कभी गिर नहीं सकती, क्योंकि यह अध्यात्म की, सत्य की और मोक्ष की सरकार है। उन्होंने कहा कि करौली सरकार जी की शरण में आने वाला व्यक्ति न केवल सांसारिक शांति पाता है, बल्कि मुक्ति का मार्ग भी प्राप्त करता है। महाराज जी ने कहा कि प्रत्येक साधक को ज्योति से ज्योति जलाने का कार्य करना चाहिए, जो अनुभव उसने पाया है, उसे दूसरों तक पहुंचाना ही सच्चे साधक का धर्म है। उन्होंने समझाया कि सनातन धर्म के तीन चरण अवलोकन, निरीक्षण और स्वीकृति हैं। पहले व्यक्ति देखता है, फिर अनुभव करता है और अंत में सत्य को स्वीकार करता है। उन्होंने नकारात्मक शक्तियों के प्रति सावधान करते हुए कहा कि जहाँ एक ओर विनाशकारी प्रवृत्तियाँ विश्व में बढ़ रही हैं, वहीं करौली सरकार जी जैसी दिव्य शक्ति विश्व में संतुलन और सकारात्मकता लाने का कार्य कर रही हैं। उन्होंने कहा कि साधक वर्तमान में जिए, क्योंकि वर्तमान ही सच्चा जीवन है। सुमिरन और गुरु की आज्ञा पालन से व्यक्ति सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठ जाता है। अपने प्रवचन में श्री चक्रपाणि जी ने एक प्रेरक कथा सुनाई जिसमें एक गुरु ने करुणा और क्षमा की मिसाल पेश की। यह कथा दर्शाती है कि जब गुरु और शिष्य दोनों ही निष्ठावान होते हैं, तब कोई भी शक्ति सनातन धर्म को झुका नहीं सकती। उन्होंने कहा कि करौली सरकार जी जैसे पूर्ण गुरु जिस साधक को स्पर्श करते हैं, वह स्वयं में गुरुत्व ग्रहण कर लेता है और दूसरों के जीवन में प्रकाश फैलाता है।

श्री चक्रपाणि जी महाराज ने कहा कि यदि भारत पुनः विश्वगुरु बनेगा, तो वह राजनीति या धन से नहीं, बल्कि ऐसे संतों की तपस्या और साधकों के समर्पण के कारण ही बनेगा। उन्होंने उपस्थित सभी साधकों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि करौली सरकार जी का यह आध्यात्मिक शासन केवल इस धरती पर आनंद नहीं देगा, बल्कि आत्मा को मुक्ति और शाश्वत शांति की ओर भी ले जाएगा। करौली शंकर महादेव ने साधकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि साधना से दिवास्वप्न टूटते हैं और साधक मृत्यु में जीना सीखते हैं। उन्होंने कहा कि साधना हमें जीवन में अनुशासन करते हुए सद्मार्ग की ओर अग्रसर करती है। जिस प्रकार नदी सागर में जाकर मिलती है उसी प्रकार साधक भी साधना के मार्ग से प्रवाहित होता हुआ ईश्वर के श्रीचरणों में स्थान पाता है। उन्होंने कहा कि देवभूमि में योग, आध्यात्म, मंत्र साधना के साथ-साथ पूज्य संतों के दर्शन व प्रवचनों से निश्चित रूप से साधकों को कल्याण होगा।

इस अवसर पर देशभर से आये हजारों साधकों ने श्री चक्रपाणि जी महाराज व करौली शंकर महादेव के प्रेरणादायी प्रवचनों से पंचदिवसीय पूर्णिमा महोत्सव में मिश्री मठ पर आध्यात्म व संस्कृति के दिव्य संगम में प्रतिभाग किया।

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