अर्थ-डे, पृथ्वी दिवस और कोरानाकाल की नकारात्मकता
अर्थ-डे, पृथ्वी दिवस आज हमें पाॅजीटिव संदेश दे रही है। संसार में पाॅजीटिव संदेश तो बहुत है, परंतु हम इसे लेने के लिए तैयार नहीं है। क्योंकि हमें अपने ऊपर स्वयं ही कन्ट्रोल नहीं है। हम जो करना चाहते हैं, वह नहीं कर पाते हैं और जो नहीं करना चाहते हैं उसे करते रहते हैं। इसके लिए हमें अपनी ईच्छा शक्ति में वृद्धि करनी होगी। ईच्छा शक्ति में वृद्धि करने के लिए अपने से आगे दूसरों के बारे में भी सोचना होगा।
कोरानाकाल की नकारात्मकता का प्रभाव पूरे वातावरण पर पड़ रहा है। जिसमें मीडिया की बड़ी भूमिका है। मीडिया के बारे में आज आमतौर पर कहा जाने लगा है कि बैड न्यूज इज गुड न्यूज और गुड न्यूज इज नो न्यूज। इसके चलते आज हर व्यक्ति भय और असुरक्षा के भाव से जीवन जीने के लिए मजबूर है। हमें महसूस होने वाले भय और असुरक्षा का पुख्ता प्रमाण भले ही न पता हो, परंतु एक नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण परिस्थितियों का गलत आंकलन करके उसे सत्य मान लेते हैं।
एक नेगेटिव न्यूज को दिनभर में कई बार देखते हैं। सबसे पहले रात में वहीं न्यूज टीवी पर देखते हैं, सुबह उठते ही समाचार पत्र में पढ़ते हैं और दैनिक दिनचर्या के समय सोशल मीडिया के माध्यम से दिनभर मोबाईल पर देखते रहते हैं। कहा जाता है कि एक शक्तिशाली पाॅजीटिव विचार अनेक नेगेटिव विचार को समाप्त कर देता है और एक नेगेटिव विचार अनेक पाॅजीटिव विचार को समाप्त कर देता है। आज के दौर की नकारात्मक वातावरण का प्रभाव हमारे ऊपर बहुआयामी ढंग से हो रहा है। हम जो सोच रहे है, जो बोल रहे है, जो खा रहे हैं, जो देख रहे हैं, जो सुन रहे हैं और जो पढ़ रहे हैं सभी स्रोतों में नकारत्मकता की अधीकता के कारण हमारा पूरा वातावरण नकारात्मक हो चुका है। इसके प्रभाव से मनुष्य अपने को सुखी बनाने के लिए दूसरों की निरंतर उपेक्षा करता चला आ रहा है। आज का मनुष्य अपनी आवश्यकता पर नहीं बल्कि लालच पर फोकस कर रहा है। महात्मा गांधी का कथन है कि प्रकृति के पास मनुष्य की आवश्कता को पूरा करने के संसाधन है परंतु लालच को नहीं। आवश्यकता को छोड़कर लालच पर बल देने के कारण हम अनेक उन माध्यमों का उपयोग करने लगते हैं जिसे कानून की दृष्टि, धर्म की दृष्टि और समाज की दृष्टि से गलत माना जाता है। सब कुछ जानते हुए भी हम स्वयं से झूठ बोलते हुए अपनी गलत बात को सिद्ध करने के लिए जिद करते रहते हैं।
नेगेटिव वायब्रेशन का प्रभाव वातावरण पर पड़ता है और नेगेटिव वातावरण का प्रभाव हमारे वायब्रेशन पर पड़ता है। हम संसार में अकेले नहीं रह सकते हैं। सहअस्तित्व में ही जीवन सम्भव है। किसी सामूहिकता के दर्शन से समाज का विकास होता है। हम समाज में रहते हुए अपना अलग अस्तित्व बनाये रखते हैं। परंतु समाज से कटकर हमारा कोई अस्तित्व संभव नहीं है। हम समाज में स्वतंत्र हैं, परंतु समाज से स्वतंत्र नहीं है। अत्यंत आत्मकेन्द्रित दर्शन ने हमें स्वार्थी बना दिया हैं। जिसके अतंर्गत व्यक्ति चाहता है, हम अकेले सुखी रहें। लेकिन हम अकेले सुखी हों ओर अगल-बगल वाला दुखी रहे यह असंभव है। पड़ोसी के घर की कराहने की आवाज हमें रात में अच्छी नींद नहीं लेने देगी। अच्छी नींद लेने के लिए अपने साथ पड़ोसी का सुखी होना भी अनिवार्य शर्त है। हम समाज से अलग नहीं है। इसलिए हमें अपने साथ ही सभी की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेनी होगी। आज फिनलैंड, डेनमार्क, नार्वे देशों के साथ ही गरीब देश भूटान भी अपने हैप्पीनेस इंडेक्स को विकास की तुलना में अधिक बल दे रहे हैं। खुशी जैसी कोई खुराक नहीं और गम जैसा कोई मर्ज नहीं। नेचर को यदि हम रिस्पेक्ट नहीं करेंगे तो नेचर भी हमारी रिस्पेक्ट नहीं करेगी। हमें हर चीज को स्वार्थ से ऊपर उठकर लोककल्याण की दृष्टि से देखना होगा। इससे हमारी दृष्टि व्यापक और सकारात्मक होती है। पाॅजीटिव दृष्टिकोण से हम अपने को बिजी रखने में सफल रहते हैं। बिजी रहने वाला ही सच्चा बिजनेसमैन होता है। हमें समय के साथ ही नहीं बल्कि समय से भी आगे चलना है। इसके लिए सबसे ऊंची वैल्यू हमारी खुशी है। हैप्पीनेस इंडेक्स को अपना टारगेट मानते हुए हर चीज की वैल्यू निकालें। खुशी हमारा सर्वोच्च मूल्य है।
मनोज श्रीवास्तव, नोडल अधिकारी, हरिद्वार कुंभ मेला 2021,