उत्तराखंडदेहरादून

पृथ्वी दिवस पर पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता अभियान


देहरादून ( जतिन शर्मा ) उड़ान फाउंडेशन के चेयरमैन समाजसेवी डॉ राजे नेगी ने पृथ्वी दिवस पर पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करते हुवे आमजन से अपने जन्मदिन व अन्य मांगलिक कार्यो के समय एक पौधा अवश्य लगाने की अपील की। इस मौके पर उन्होंने स्वयं भी अपने घर के आंगन में अपनी बेटियों संग फलदार पौधा रोपा।आमजन से पौधरोपण करने की अपील करते हुवे नेगी ने कहा कि पृथ्वी दिवस यानि 22 अप्रैल का दिन है, विश्व के 192 देश पृथ्वी के प्रति आज फिर से अपना चिंतन ब्यक्त करेंगे और फिर अगले वर्ष इसी दिन पर चिंतन करेंगे, मगर जीवन दायनी पृथ्वी पर हो रहे उथल पुथल के लिए हमें स्वयं तय करना होगा हम जिस प्रकार की जीवनशैली में जीवनयापन कर रहे हैं क्या उसके लिए आने वाली पीढियां हमें माफ़ कर पायेंगी?
विश्व की जनसँख्या आज 7 अरब के पार पहुँच चुकी है, अकेले भारत पर गौर करें तो 75 वर्ष पूर्व जब भारत आजाद हुवा था तब भारत की जनसँख्या मात्र 30 करोड़ थी जो आज बढ़ कर 130 करोड़ हो चुकी है और ये सरकारी आंकड़ा है जिस पर हमेशा प्रश्नचिन्ह रहता है, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल आदि देशों के भी करोड़ों लोग अवैध रूप से भारत में रहते हैं,संसाधनों की बात करें तो भारत में आज़ादी के समय से ही भुखमरी चल रही थी जबकि तब जनसँख्या मात्र 30 करोड़ थी, ऐसे में आज ये और भी सोचनीय विषय हो जाता है कि आज भारत की 130 करोड़ की जनसँख्या के लिए खाद्यान कहाँ पैदा होता होगा? कहाँ इतनी जनसँख्या रहती होगी ? क्या खाती होगी ? कहाँ चलती होगी ? और कैसे चलती होगी ? क्या हमने कभी इस ओर गौर किया ?
आज विश्व भर में 7 अरब से उपर की जनसँख्या हो चुकी है, ऐसे में गौर करने वाली बात ये है कि केवल जनसँख्या ही नहीं बढ़ी बल्कि मनुष्य की भौतिक आवश्यकताएं भी साथ-साथ बढीं हैं ? भवन, गाड़िया, सड़क, कारखाने, होटल, मॉल, दुकान, रेल, जहाज, मोबाइल, टीवी, फ्रिज, एसी, कूलर, पंखे, बल्ब, प्लास्टिक, लोहा, कांच, कोयला, तेल, गैस, चूल्हा, चिमनी, कम्प्यूटर, फैक्स, फोटो स्टेट मशीन, बिजली परियोजनायें, मोटर, बैट्री, टाइल, ईंट, सीमेंट, पेंट, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च, आश्रम खिलोने आदि ? ये सब बढ़ा है, बेतहाशा बढ़ा है और ये सब हमें किसने दिया ? हम इंसानों ने अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जिस भी वस्तु की आवश्यकता हुई वो हमने पृथ्वी से हासिल की, इतना ही नहीं हमें जो आवश्यक नहीं भी था वो भी हमने धरती का सीना छलनी करके हासिल किया ?
हम हिन्दू,मुसलमान,सिख,इसाई,बौध,पारसी,यहूदी चाहे किसी भी समुदाय से हों, चाहे कितने ही पूंजीपति या गरीब हों हम सबका अस्तित्व तभी तक है जब तक ये धरती और इसका पर्यावरण सुरक्षित है, यहाँ शुद्ध पीने का पानी, खाने के लिए पोष्टिक खाद्यान और साँस लेने के लिए शुद्ध हवा है |
धरती को सुरक्षित रखने की नैतिक जिम्मेदारी हम मानवों पर है और हम मानव ही इसको नष्ट करने पर तुले हैं ? हमें धरती के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा ? हमें धरती पर कम से कम कंक्रीट, जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों की सुरक्षा, शुद्ध पानी के लिए वृक्षारोपण, कूड़े का जैविक निस्तारण, जैविक खेती, सौर एवं पवन उर्जा का स्त्माल, ग्रीन-हाउस गैसों में कमी लाने के लिए ठोस और कारगर कदम उठाने होंगे, तभी जाकर हम धरती को सुरक्षित रख पायेंगे, वर्ना आये दिन जिस प्रकार पानी के लिए हाहाकार मच रहा है वो दिन दूर नहीं जब धरती से प्राणीं जीवन का अस्तित्व ही मिट जाए!
सीधी भाषा में कहा जाए तो धरती में हो रही उथल-पुथल हमें चेतावनी दे रही है कि जिन्दा रहना है तो पेड़ उगाएं, कृषि भूमि, बाग़ बगीचे, जंगल उजाड़ कर ज़मीन कंक्रीट में तब्दील न करें, जनसँख्या दबाव कम करें, मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च आस्था के प्रतीक हो सकते हैं पर इनसे जीने के लिए अनिवार्य ऑक्सीजन, पानी, फल सब्जी, राशन आदि खाद्यान उत्पादन नहीं होता है उसके लिए कच्ची भूमि की आवश्यकता होती है, कुल मिलाकर हमें धरती को कंक्रीट में तब्दील होने से बचाना होगा!

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