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हमारे सभी विरासत स्थल जल स्रोत, विलुप्त हो रहे जीव एवं वनस्पतियां हमारे राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति : स्वामी चिदानन्द सरस्वती


देहरादून ( जतिन शर्मा ) परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने ‘अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल दिवस’ के अवसर सांस्कृतिक-ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों और धरोहरों के संरक्षण का संदेश देेते हुये कहा कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल हमारे पूर्वजों की दी हुई अनमोल विरासत है । इनका संरक्षण और देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है ।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसके इतिहास और वर्तमान की नींव पर आधारित होता है । देश का इतिहास जितना गौरवमयी होगा उसका भविष्य भी उतना ही स्वर्णिम होगा । इतिहास का संरक्षण कर हम उज्वल भविष्य का निर्माण कर सकते है । प्राचीन काल में बनी इमारतें, मन्दिर, लिखे गए शास्त्र और साहित्य को हमेशा जीवंत और जाग्रत रखकर प्राचीन संस्कृति की सुदृढ़ नींव पर सुरक्षित भविष्य का निर्माण किया जा सकता है ।


स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हमारी धरोहर केवल हमारी इमारतें और मन्दिर ही नहीं बल्कि वन, पर्वत, झील, मरुस्थल, नदियां, सांस्कृतिक स्मारक, हमारी आध्यात्मिक धरोहर व शास्त्र भी हैं इन्हें संरक्षित करना मानवता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है । हमारे सभी विरासत स्थल हमारे देश की अमूल्य संपत्ति है अतः आने वाली पीढियों और मानवता के हित के लिए इनका संरक्षण करना नितांत आवश्यक है ।


स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि वर्तमान समय में हमारी महत्वपूर्ण विरासत हमारे जल स्रोत और विलुप्त हो रहे जीव एवं वनस्पतियां हैं जिनका संरक्षण किये बिना धरती पर मानव जीवन सम्भव नहीं है । विलुप्त हो रहें जीव और वनस्पतियों के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक इमारतों के मूल को सुरक्षित रखना हम सभी की जिम्मेदारी है परन्तु विडंबना तो यह है कि हमारे द्वारा ही इन्हें नष्ट किया जा रहा है जो चितंन का विषय है ।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारत विविधता से युक्त राष्ट्र है, यहां पर सांस्कृतिक तथा धार्मिक विविधता व्याप्त है इसके बावजूद भी हमारे ऐतिहासिक स्थल हमें अपने अतीत के झरोखे से परिचित कराते हैं जिससे ज्ञान के साथ मानसिक एवं आध्यात्मिक शांति भी प्राप्त होती है। ऐतिहासिक स्थल सम्पूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने का भी कार्य करते हैं जिससे भाईचारा, एकता एवं अखण्डता को बल मिलता है इसलिए प्राकृतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण हेतु अपना योगदान देना अत्यंत आवश्यक है।

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