स्व-स्थिति से सर्व परिस्थितियों पर विजय होती है:मनोज श्रीवास्तव

स्व-स्थिति से सर्व परिस्थितियों पर विजय होती है। विजय प्राप्त करने का साधन है स्व-स्थिति मंे स्थित रहना। आत्मा स्व है और देह पर है अर्थात पराया है। देह के भान में आना स्व स्थिति नही है बल्कि आत्मिक अनुभव में आना स्व स्थिति है। इसलिए पूरे दिन चेक करें कि कितना समय स्व स्थिति की बनी रहती है।
स्व स्थिति में रहना स्व धर्म है। स्व स्थिति व स्व धर्म सूख का अनुभव कराता है। इसके विपरीत प्रकृति का धर्म अर्थात पर धर्म या देह की स्मृति दुख का अनुभव जरूर करायेगी लेकिन जो स्व स्थिति में होगा वह सदैव सुख का अनुभव करेगा। सुख के अनुभव में दुख की लहर नही आ सकती है। संकल्प में भी अगर दुख की लहर आई तो यह सिद्ध हो जाता है कि हम स्व स्थिति से नीचे चले आये है। कोई भी कार्य करने के पूर्व चेक करे कि स्व स्थिति में है। यदि हलचल है तो स्व स्थिति में नही है। यदि स्वंय हलचल में होंगे तो सूनने वाले भी एकाग्र नही होंगे।
सहयोगी रूप बन जाने से कोई दुश्मन से बजाय दोस्त बन जाता है। क्रोध विकार सहनशाक्ति के रूप में बदल कर एक शस्त्र बन जाता है। क्रोध की अग्नि योग की अग्नि मंे बदल जाती है। जो हमको नही जलायेगी बल्कि हमारे पापों को जलायेगी। इससे हमारा लोभ खत्म हो जायेगा और चाहिए-चाहिए कि जगह लिजिए लिजिए हो जायेगा। ऐसे ही हमारा अंहकार स्वाभिमान में बदल जायेगा। इसलिए विश्व परिवर्तन के पहले स्व परिवर्तन जरूरी है। स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन सहज ही हो जायेगा। इसके लिए परिवर्तन की शाक्ति साथ में रखें।
स्वप्न में भी फ्री नही होना है, इसको कहा जाता है फुल बिजी रहना। हमारे सारे दिनचर्या का आधार स्वप्न होता है। जो दिन रात सेवा में बिजी रहते है उनका स्वप्न भी सेवा के अर्थ में होगा। स्वप्न में भी कई नई नई बाते सेवा के प्लान और विधि दिखाई देती है। जितना हम बिजी रहेंगे उतना ही अपने पुरूषार्थ के व्यर्थ से अपने को बचा सकेंगे और दूसरों को भी बचा सकेंगे। इसलिए सदैव चेक करें कि समर्थ हो रहा है या व्यर्थ।