रामायण में समाहित है जीवन जीने का सूत्र: डॉ पण्ड्या
हरिद्वार 16 अप्रैल।
अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि रामचरितमानस में जीवन जीने के उपयोगी सूत्र समाहित है। इसमें वैयक्तिक, पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर को विकास करने वाले सभी तरह का मार्गदर्शन मिलता है। आवश्यकता केवल उसके अध्ययन एवं मनन कर व्यावहारिक जीवन में उतारने की है। साधना के द्वारा से इस ओर अग्रसर होना चाहिए। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है।
आध्यात्मिक विचारक डॉ पण्ड्या नवरात्र साधना में जुटे देश भर के गायत्री साधकों को रामचरितमानस व्याख्यान माला के चौथे दिन आनलाइन संबोधित कर रहे थे। रामचरित मानस में गुरु का महत्व का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सद्गुरु के आदेशों का पालन से शिष्य अपने मन रूपी दर्पण को साफ करते हुए चहुंमुखी विकास करता है। सद्गुरु अपने शिष्यों को साधना के माध्यम से तैयार करते हैं, ताकि वह सबल, सशक्त हो और स्वयं के साथ समाज का भी भला कर सकें। साधना से ही व्यक्ति की साधुता-दुष्टता के गुण धर्म एवं उसके लक्षण को पहचान सकता है और वह साधु के साथ रहकर समाज के विघटनकारी तत्व यानि दुष्ट प्रवृत्ति वालों को अलग कर सकता है। मानस मर्मज्ञ डॉ पण्ड्या ने रामायण के विभिन्न कथानकों के माध्यम से विस्तृत जानकारी दी।
देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या ने नवरात्र साधना के दिनों में जप के साथ नियमित रूप से श्रेष्ठ साहित्यों को अध्ययन करने पर बल दिया। इससे पूर्व संगीत विभाग के भाइयों ने ‘अपनी भक्ति का अमृत पिलो दो प्रभु‘ गीत से साधकों के मन को साधना की ओर लगाये रखने के लिए प्रेरित किया।