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मां, मातृभाषा एवं मातृभूमि पर करें गर्व: उपराष्ट्रपति


भारतीय संस्कृति पर वैज्ञानिक शोध का नेतृत्व करेगा देसंविवि: राज्यपाल
भारतीय पंरपरा शांति, समरता और सौहार्द्र की रही है: प्रतिकुलपति


दक्षिण एशिया में ‘भरोसा बढ़ाने’ और स्थापित ‘धारणाओं को तोड़ने’ की पहल
उपराष्ट्रपति ने देसंविवि में दएशांसुसं का शुभारंभ

(हरिद्वार।संदीप शर्मा)


देश के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने देव संस्कृति विश्वविद्यालय परिसर में दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान (दएशांसुसं) का शुभारंभ किया। साथ ही उन्होंने विवि में स्थापित एशिया के प्रथम बाल्टिक सेंटर का निरीक्षण किया तथा देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर शहीदों के याद में बने शौर्य दीवार पर पुष्पांजलि अर्पित की। इससे पूर्व उपराष्ट्रपति एवं राज्यपाल ले.ज. (सेनि) गुरमीत सिंह का विवि पहुंचने पर कुलपति शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या ने पुष्प गुच्छ भेंटकर भव्य स्वागत किया।


उपराष्ट्रपति एवं राज्यपाल अपने एक दिवसीय प्रवास पर शनिवार को देवसंस्कृति विवि पहुंचे। यहां उन्होंने दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान (दएशांसुसं) का उद्घाटन किया। यह संस्थान दक्षिण एशियाई देशों के बीच तमाम राजनीतिक चुनौतियों के मद्देनजर क्षेत्रीय स्थिरता और आपसी सकारात्मक व्यवहार की स्थापना को प्रेरित करता रहेगा। विवि में इस संस्थान की स्थापना को उपराष्ट्रपति ने इस क्षेत्र का मील का पत्थर जैसा बताया।


इस दौरान उपराष्ट्रपति नायडू मुख्य अतिथि के रूप में शांतिकुंज स्थापना की स्वर्ण जयंती के मौके पर आयोजित व्याख्यानमाला में शामिल हुए। इस अवसर पर उन्होंने मां, मातृभाषा और मातृभूमि को सदैव आत्मा से जोडे रहने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रमण सहित अनेक ने अपनी मातृभाषा में अध्ययन कर उंचाइयों को प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि भारत में विविधता ही यहां विशेषता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा के दिव्य प्रकाश में ही व्यक्ति समाज के प्रति जिम्मेदार नागरिक बन पाता है। शिक्षा का भारतीय करण नई शिक्षा नीति का मूल उद्देश्य है। देवसंस्कृति विवि की शिक्षा प्रकृति और संस्कृति का अच्छा संयोजन है। भारतीय संस्कृति के उत्थान में जुटे गायत्री परिवार एवं देवसंस्कृति विवि के कार्यों की सराहना की।
राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा कि देसंविवि मुझे एक मंदिर जैसा लगता है। भारतीय संस्कृति पर जो वैज्ञानिक तरीके से शोध हो रहा है, उसका नेतृत्व देवसंस्कृति विवि करेगा, ऐसा मुझे विश्वास है। दएशांसुसं शांति प्रेम और खुशहाली के लिए कार्य करेगा। उन्होंने कहा जिस तरह पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने शांति एवं सौहार्द्र के लिए कार्य किया है, उसे यह सेंटर आगे बढायेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को गहराई से जानने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है, यह हमें अपने जड़ों से जोड़ती है।


प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या ने स्वागत उद्बोधन एवं दएशांसुसं की परिकल्पना की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारतीय पंरपरा शांति, समरता और सौहार्द्र की रही है। इसी कार्य को इस संस्थान के माध्यम से और आगे बढायेंगे। इसी क्रम में वेदों और उपनिषदों के सार को भी विश्व भर में फैलायेंगे। कुलपति शरद पारधी ने आभार ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने गायत्री मंत्र लिखित चादर, युग साहित्य एवं स्मृति चिह्न भेंटकर उपराष्ट्रपति एवं राज्यपाल को सम्मानित किया। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने देसंविवि के नवीनतम वेबसाइट, प्रज्ञायोग प्रोटोकॉल एवं उत्सर्ग पुस्तक का विमोचन किया।

इस अवसर पर शांतिकुंज एवं देसंविवि परिवार के अलावा अनेक प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे।
इससे पूर्व माननीय उपराष्ट्रपति ने देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में स्थापित एशिया के प्रथम बाल्टिक सेंटर का अवलोकन किया। उन्होंने बाल्टिक देशों में सेंटर द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों को सराहा। साथ में उपराष्ट्रपति एवं राज्यपाल ने कुटीर उद्योग, हस्तकरघा का अवलोकन किया। माननीय उपराष्ट्रपति जी ने प्रज्ञेश्वर महादेव का पूजन कर विश्व शांति, राष्ट्र की सुख एवं उन्नति की कामना की। उन्होंने प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर में रुद्राक्ष के पौधे का रोपण कर पर्यावरण संतुलन के लिए संदेश दिया।

उपराष्ट्रपति शांतिकुंज पहुंचे
हरिद्वार १९ मार्च।
अपने प्रवास के दौरान माननीय उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू जी एवं राज्यपाल लेज (सेनि) श्री गुरमीत सिंह जी इक्कीसवीं सदी की गंगोत्री शांतिकुंज पहुुंचे। यहाँ उन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुखद्वय श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या एवं श्रद्धेया शैलदीदी से भेंट कर विभिन्न विषयों पर चर्चा की। श्रद्धेया शैलदीदी ने कहा कि यह आपका अपना गुरुद्वारा है। इस अवसर पर सन् १९२६ से सतत प्रज्वलित सिद्ध अखण्ड दीप का दर्शन विश्व शांति की प्रार्थना की।

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